बांसिया
बुग्ड़ा कपास की फसल में पाया गया एक छोटा सा कीड़ा है. छरहरे बदन के इस
कीड़े की टांगें अत्याधिक लम्बी व् धागेनुमा होती है. इस कीड़े के एंटीना
भी बहुत लम्बे होते हैं. इतनी लम्बी टांगों व् एंटीना के बावजूद इस कीड़े
के शरीर की लम्बाई बामुश्किल सात से दस मि.मी. ही होती है. Lygaeidae
कुटुंब की Jalysus जाती के इस बुग्ड़े की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं. कुछ
प्रजातियाँ तो शाकाहारी होती हैं और कुछ प्रजातियाँ आंशिक तौर पर परभक्षी
होती हैं. शाकाहारी बुग्ड़े कपास, मक्की, टमाटर, तम्बाकू व् घिया-तोरी आदि
के पौधों की पत्तियों की निचली सतह से रस चौसन कर गुज़ारा करती हैं.
इस कीट द्वारा फसलों में हानि पहुचाने की कोई शिकायत ना तो कभी किसी
किसान ने और ना ही किसी कीट-विज्ञानी ने कहीं दर्ज करवाई है. शायद इसीलिए
इस कीट की गिनती कपास के मेजर या मायनर कीटों में होना तो दूर की कौड़ी. कीट
विज्ञानिक तो कपास की फसल में हानि पहुँचाने कीटों में इस बांसिया बुग्ड़े
का जिक्र करना भी मुनासिब नही समझते. करें भी कैसे जब ये बांसिया बुग्ड़े
अपने वजूद का अहसास ही नही करा पाते. लेकिन हकीकत यह भी है कि रूपगढ,
राजपुरा, इग्राह, निडाना, निडानी, ललित खेडा, भैरों खेडा व् बराह कलां की
खेत पाठशालाओं में कपास की फसल में इस कीट को देख चुके हैं.
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