Thursday, February 26, 2009

छ्छुँदरिया झींगुर - एक सर्वभाजी कीट

छ्छुँदरिया झींगुर
छ्छुँदरिया झींगुर आलू में।
छ्छुँदरिया झींगुर



छ्छुँदरिया-झींगुर नाम का यह कीट खरकरामजी गावं के सतबीर पुत्र धुप सिंह की आलू फसल में नुकशान करता पाया गया है। यूरोपियन लोग इसे Mole Cricket कहते  हैं. ये कीट Orthoptera वंशक्रम के Gryllotalpidae कुनबे के सदस्य होते हैं. भूरे रंग के इस मोटी चमडी वाले कीट की आँखें मनके जैसी तथा अगली टाँगें फावडे जैसी होती है। इन टांगों से यह सुरंग खोदने का काम लेता है। एक रात में ही भूमि की सतह के ठीक निचे-निचे 20 फुट लम्बी सुरंग खोदने का मादा रखते हैं, ये कीट. छ्छुँदरिया-झींगुर रात के समय ही सक्रिय रहते है.  सहवासी-समय के सिवाय यह कीट तकरीबन भूमिगत ही रहता है। सहवास के समय यह 8 किलोमीटर तक भी उड़ सकता है। यह कीट ना तो शुध्द रूप से शाकाहारी है और ना ही शुध्द रूप से मांसाहारी है। जो फंस गया वही खा लेता है। इसीलिए इसे सर्वभक्षी कीट कहा जाता है। इसके भोजन में आलू , पौधों की जड , घास ,कीडे ,लार्वा आदि शामिल होते है।










Tuesday, February 24, 2009

मंडूसी में मूला अल




निडाना गाँव के महाबीर पिंडा के खेत में गेंहू की फसल में मंडूसी बिना कोई खरपतवारनाशक का स्प्रे किए अपने आप पीली हो कर सूखने लग रही थी। महाबीर के बुलावे पर कीट कमांडो किसानो ने मौके पर जाकर बारिकी से निरिक्षण किया। इन्होने पाया कि थानेदार के जूतों के रंग का कीट मंडूसी के पौधों का तने के निचले हिस्सों से रस चूस रहा था। और ध्यान से देखने पर यह कीट मंडूसी कि जडों पर भी बहुतायत में पाया गया। सारे किसान मारे खुशी के उच्छल पड़े ,"ओह ! हमने मंडूसी ख़त्म करने का कुदरती इलाज ढूंढ़ लिया।" किसानो कि यह खुशी क्षणिक ही सिद्ध हुई जब इन्हें पता चला कि यह कीट तो गेहूँ के पौधों पर भी हमला करता है। चिंतित किसानों ने और ज्यादा ध्यान से अवलोकन शुरू किया तो पाया कि खेत में इस अल का हत्यारा फफुन्दीय रोगाणु भी मौजूद है। इस रोगाणु की कारगरता अच्छी खासी पाई गई। फिर तो किसानों ने आस पास खड़े गैरफसली पौधों पर इस कीट का भक्षण करनेवाले सीरफडों मक्खी के बच्चे तथा लेडीबग के बच्चे व प्रौढ़ ढूंढ़ निकाले। "जीवस्य जीव रिपु मक्षिकाया शत्रु घृतं।"  , संस्कृत की इस लोकोक्ति को याद करते हुए किसान घर को चल दिए। महीने बाद महाबीर के खेत से बिना कोई खरपतवारनाशक स्प्रे किए, मंडूसी खेत से गायब थी। मंडूसी का यह रसचूसने वाला कीट तो शायद धान की जड़ का अल/चेपा हो सकता है। इस कीट को खत्म करने वाले रोगाणु की पहचान करने में कोई भी विशेषकर कीटविज्ञानी या रोगाणुविशेषग हमारी मदद कर सकता है।  शायद यह रोगाणु बेवरिया बेसियाना  नाम की फफूंद हो सकती है. अगर यह सही है तो फिर स्तनपाईयों को सावधान रहने की जरुरत है. क्योकि यह फफूंद स्तनपाईयों के लिए भी इतनी ही घातक होती है.



मिलीबग के कुशल शिकारी - लेडिबीटल



मिलीबग के कुशल शिकारी के रूप में जिला जींद की धरती पर दस किस्म की बुगडी पायी गई है । स्थानीय लोग इन्हें मनयारी या जोगिन कहते हैं. स्कूल में पढने वाले इन्हें पास-फेल के रूप में जानते हैं. अंग्रेज लोग इन्हें लेडिबीटल या लेडीबग के नाम से पुकारते हैं। इनके बालिग व शिशु जन्मजात मांसाहारी कीट होते हैं । इनके भोजन में विभिन्न कीटों के अंडे, तरुण सुंडियां, अल या चेपा, मिलीबग, चुरडा, तेला, सफ़ेद मक्खी व् फुदका आदि अनेक हानिकारक कीट शामिल होते हैं। जिन्हें ये बड़े चाव से खाते हैं। हमारे खेतों में इनकी उपस्तिथि ,कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में कटोती करवा सकती है। हम इन्हें उम्दा कीटनाशी भी कह सकते हैं क्योंकि ये कीटों को खा कार उनका सफाया हमारे लिए मुफ्त में ही करते हैं जबकि कीटनाशकों पर इसी काम के लिए हमें पैसा खर्च करना पडता है। अतः हम इनकी सही पहचान, हिफाजत व वंशवृद्धि कर जहाँ खेती के खर्च को घटा सकते हैं वहीं कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से मानव स्वस्थ की रक्षा कर बहुत बड़ी समाज सेवा भी कर सकते हैं।

Saturday, February 21, 2009

कपास का भस्मासुर -मिलीबग

बी टी बीजों के प्रचलन के साथ ही कपास की फसल में एक नए कीड़े के प्रकोप की शुरुआत हुई है । इस कीट का नाम मिलीबग है । लोग इसे मिलीभगत,फुही व भस्मासुर आदि नामों से भी पुकारते हैं । देश के साथ साथ अपने हरियाणा में भी अभी से इस कीट को कपास की फसल के लिए एक बडे खतरे के रूप में देखा जाने लगा है । लेकिन यह कीट अपनी तीन कमजोरियों; " मादा का पंखविहीन होना, कीट का बहुभक्षी होना व थैली में अंडे देना । " के कारण अपने शत्रुओं का आसानी से शिकार बनता है। जिला जींद की कपास परिस्थितिक्तंत्र में इस कीट के शत्रुओं के रूप में एक परजीवी, तीन परजीव्याभ, तीस परभक्षी व तीन रोगाणु पाए गए हैं। राजपुरा,रूपगढ व निडाना के किसानों ने स्वयं अपनी आँखों से मिलीबग के इन शत्रुओं को कपास के पौधों व गैरफसली पौधों पर देखा है। इसका मतलब है अपने यहाँ एक मजबुत प्राकृतिक संतुलन का होना। इन्ही कीटों में से एक दीदड़ बुगडा मिलीबग का खून चूसते हुए इस विडियो में निडाना के किसानों ने मौके पर कैद किया है।