कपास की फसल में कुण्डलक कीड़ा एक ऐसा पर्णभक्षी कीट है जिसकी गिनती कपास के नामलेवा से कीटों में भी नही होती। यानीकि कपास की फसल में इसका प्रकोप कभी-कभार ही देखने में आता है। खेत में इसके आगमन की शुरुवात किनारों से ही होती है। इस कीट की सुंडी विविध किस्म के पौधों की पत्तियां खा-पीकर अपना जीवन निर्वाह करती हैं। यह सुंडी पत्तों की नसों के बीच की जगह को खाती है परिणामस्वरुप पत्ता नसों का ढांचा भर रह जाता है और अंत में झड़ जाता है। कपास की फसल में टिंडे पकने के समय इस तरह से पत्तों का झड़ जाना टिंडों तक रोशनी पहुँचने का रास्ता साफ करता है। और इस तरह से टिंडे खिलने में सहायक होता है।
. इस कुण्डलक का वयस्क 1"x1.5" के आकार का एक धब्बेदार भूरे रंग का पतंगा होता है। इसकी आगे वाली पंखों के मध्य भाग में चाँदी रंगे दो निशान होते हैं। देखने में ये निशान V या 8 जैसे दिखाई देते हैं। पीछे वाले पंख पिलाकी लिए भूरे रंग के होते हैं। किनारों पर यह रंग गहरा होता है। पतंगा नर हो या मादा, इनके पेट के अंतिम छोर पर बालों का गुच्छा होता है। इस कीड़े की मादा पतंगा अपने जीवन काल में सामान्य परिस्थितियों में लगभग 200-250 अंडे देती है। अंडे एक-एक करके पत्तियों की निचली सतह पर दिए जाते हैं। चपटे एवं अर्धगोलाकारिय इन अण्डों का रंग सफ़ेद होता है। अंडविस्फोटन होने में चार से छ: दिन लग जाते हैं. इस कुंडलक की नवजात सुंडियां पूर्ण रूपेण विकसित होने के लिए अपने जीवनकाल में पांच बार कांजली उतारती हैं। भोजन की उपलब्धता व् मौसम की मेहरबानी मुताबिक ये सुंडियां पूर्ण विकसित होने के लिए दो से चार सप्ताह का समय लेती हैं। हलके हरे रंग की यह सुंडी पूर्ण विकसित होने पर दो इंच तक लम्बी हो जाती है. प्युपेसन या तो पत्तों की निचली सतह पर या फिर पत्तों के मुड़े हुए किनारों के अंदर। प्युपेसन जमीन पर पड़े पौधों के मलबे में भी होती है। इस कीट की यह प्युपेसन अवधि आठ-दस दिन की होती है।
हमारे फसलतंत्र में इस कीट के अंडे व् नवजात सुंडियों को खाने के लिए लेडी बीटल की दर्जनों, कराईसोपा की दो व् मांसाहारी बुग्ड़ों की दस प्रजातियाँ मौजूद रहती हैं। इस कीट की सुंडियों से अपना पेट भरने वाले कम से कम आठ किस्म के तो हथजोड़े ही किसान कपास के खेतों में देख चुके हैं। इस कीट के पतंगों को हवा में गुछ्ते हुए लोपा व् डायन मक्खियों को किसान स्वयं अपनी आँखों से देख चुके हैं। इस कीट के अण्डों में अपने बच्चे पलवाने वाली दुनिया भर की सम्भीरकाएं भी हमारे फसलतंत्र में पाई जाती हैं। कपास के खेतों में मकड़ियां भी इस कीट को खाते हुए किसानों ने देखी हैं।
किसानों का कहना है कि जब हमारे खेतों में कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के रूप में इतने सारे कीट प्राकृतिक तौर पर पाए जाते हैं तो हमें बाज़ार से खरीद कर कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता कहाँ है?
No comments:
Post a Comment