Friday, August 5, 2011

सांवला मत्कुण

सांवला मत्कुण की गिनती कपास की फसल में हानि पहुचने वाले छिट-पुट कीटों में होती है. इस कीड़े का जिक्र तो कपास के फोहे खराब करने के लिए या घरों में भण्डारण के समय इंसानों को दुखी करने के लिए ज्यादा किया जाता है. कपास की लुढाई के समय इस कीट के प्रौढ़ों व् निम्फों का साथ पिसा जाना, रूई को बदरंग कर देता है. इस कीड़े को अंग्रेज लोग Dusky Cotton bug कहते हैं जबकि कीट- वैज्ञानिक इसे Oxycarenus laetus के नाम से जानते हैं. Hemiptera वंश के इस कीट के कुनबे को Lygaeidae कहा जाता है.
इस कीड़े के प्रौढ़ों का रंग गहरा भूरा होता है. इनके शरीर की लम्बाई बामुश्किल चार-पांच मी.मी. होती है. इस कीड़े के पारदर्शी पंखों का रंग धुंधला सफ़ेद होता है. इसके युवा शिशुओं का पेट गोल होता है. ये निम्फ शारीरिक बनावट में अपने प्रौढ़ों जैसे ही होते हैं पर इस अवस्था में पंख नही होते. चौमासा शुरू होने पर इस कीड़े की सिवासिन मादाएं कपास के अर्धखिले टिंडों में अंडे देती हैं. अर्धखिले टिंडों में फोहों पर ये अंडे एक-एक करके भी रखे जा सकते हैं और गुच्छो में भी. शुरुवात में इन अण्डों का रंग झकाझक सफ़ेद फिर पीला व् अंत में अंड-विषफोटन से पहले गुलाबी हो जाता है. ताप व् आब की अनुकूलता अनुसार इन अण्डों से 5 से 10 दिन में निम्फ निकलते हैं. इनका यह निम्फाल जीवन तकरीबन ३५ से ४० दिन का होता है. इस दौरान ये निम्फ छ: बार कांजली उतारते हैं. इस कीड़े के प्रौढ़ एवं निम्फ, दोनों ही टिंडों में कच्चे बीजों से रस चूसते हैं जिसके परिणामस्वरुप कपास का वजन घटता है और पैदावार में कमी आती है पर खड़ी फसल में यह नुकशान नज़र नही आता. इसीलिए तो हरियाणा में कोई भी किसान इस कीट को काबू करने वास्ते कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हुए प्रयासरत नजर नही आता.
बी.टी.कपास के जरे-जरे में मौजूद जहर के पक्षपाती होने के कारण कब कौनसा रस चुसक कीट माईनर से मेजर बन बैठे, कहा नही जा सकता?








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