कपास की फसल में पाई जाने वाली यह पर्णभक्षी पत्ता-लपेट सुंडी है तो एक नामलेवा सा कीड़ा पर भारत के सभी कपास उगाऊ क्षेत्रों में पाया जाता है. पर यह छिटपुट की सुंडी भी कभी कभार किसानों को नानी याद दिला देती है। अंग्रेजी में इस कीड़े को Cotton leaf-roller कहते हैं। कीट वैज्ञानिक इसे वैज्ञानिक भाषा में Lepidoptera वंशक्रम के Pyralidae परिवार की Sylepta derogata कहते हैं।
इस कीट के पतंगें माध्यम आकार के तथा पीले से पंखों वाले होते हैं। इन पंखों पर भूरे रंग की लहरिया लकीरें होती हैं। पतंगे के सिर व् धड़ पर काले व् भूरे निशान होते हैं। पूर्ण विकसित पतंगे की पंखों का फैलाव लगभग 28 से 40 मि.मी. होता है। अन्य पतंगों की तरह ये पतंगें भी निशाचरी होते हैं। रात के समय ही मादा पतंगा एक-एक करके तकरीबन 200 -300 अंडे पत्तों की निचली सतह पर देती है। इन अण्डों से चार-पांच दिन में शिशु सुंडियां निकलती हैं। ये नवजात सुंडियां अपने जीवन के शुरुवाती दिनों में तो पत्तियों की निचली सतह पर भक्षण करती हैं।पर बड़ी होकर ये सुंडियां पत्तियों को किनारों से ऊपर की ओर कीप के आकार में मोड़ती हैं तथा इसके अंदर रहते हुए ही पत्तियों को खुरच कर खाती हैं। ये सुंडियां अपने वृद्धिकाल में छ: या सात बार कांजली उतारती हैं। इस कीट की यह लार्वल अवस्था लगभग 15 -20 दिन की होती है. यह कीड़ा अपनी प्यूपल अवस्था पौधों पर या फिर इन मुड़ी हुई प्रोकोपित पत्तियों के अंदर ही या फिर जमीन पर पौधों के मलबे में पूरी करता है। इस कीड़े को अपना ये प्यूपल-काल पूरा करने में आठ-दस दिन लग जाते हैं। इस कीट के प्रौढ़ सप्ताह भर जीवित रहते हैं। अपना जीवन सफल बनाने के लिए एक सप्ताह के अंदर-अंदर ही इन प्रौढ़ नर व् मादाओं को मधुर-मिलन भी करना होता है तथा मादाओं को अंड-निषेचन भी करना होता है।
खाने और खाए जाने के इस स्वाभाविक काम में इन्हें भी खाने वाले अनेकों कीट कपास की फसल में पाए जाते हैं। कातिल बुग्ड़े, छैल बुग्ड़े, सिंगू बुग्ड़े, दिद्दड़ बुग्ड़े, बिंदु बुग्ड़े व् दस्यु बुग्ड़े इस कीट की सुंडियों का खून व् अण्डों का जीवन-जूस पीते हैं। विभिन्न प्रकार की लेडी बीटल इसके अण्डों व् तरुण-सुंडियों का भक्षण करती हैं। लोप़ा मक्खियाँ इसके प्रौढ़ों का शिकार करती हैं। हथजोड़े के प्रौढ़ एवं बच्चे इस कीट की सुंडियों का भक्षण करते हैं। कोटेसिया नामक सम्भीरका इस कीट की सुंडियों के पेट में अपने बच्चे पालती है।
खाने और खाए जाने के इस स्वाभाविक काम में इन्हें भी खाने वाले अनेकों कीट कपास की फसल में पाए जाते हैं। कातिल बुग्ड़े, छैल बुग्ड़े, सिंगू बुग्ड़े, दिद्दड़ बुग्ड़े, बिंदु बुग्ड़े व् दस्यु बुग्ड़े इस कीट की सुंडियों का खून व् अण्डों का जीवन-जूस पीते हैं। विभिन्न प्रकार की लेडी बीटल इसके अण्डों व् तरुण-सुंडियों का भक्षण करती हैं। लोप़ा मक्खियाँ इसके प्रौढ़ों का शिकार करती हैं। हथजोड़े के प्रौढ़ एवं बच्चे इस कीट की सुंडियों का भक्षण करते हैं। कोटेसिया नामक सम्भीरका इस कीट की सुंडियों के पेट में अपने बच्चे पालती है।
आभार ....
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