Saturday, July 17, 2010

प्राकृतिक कीटनाशी - कराईसोपा

कराईसोपा का डिंबकः मिलीबग का शिकार।
कराईसोपा का प्रौढ़।
कराईसोपा का डिंबक।


हमारे यहाँ फसलों में पाया जाने वाला यह कराईसोपा एक महत्वपूर्ण कीटखोर कीट है। यह हमारी फसलों को हानि पहुँचाने वाले नर्म देह कीड़ों का प्रमुख प्राकृतिक शत्रु है। आमतौर पर इस कीट के प्रौढ़ रात को ही सक्रिय रहते हैं। अँधेरे में रोशनी पर आकर्षित होना इनके स्वभाव में शुमार होता है। हल्कि-हरे रंग की झिल्लीदार पंखों वाला यह कराईसोपा का प्रौढ़ नरम देह प्राणी होता हैं। इसकी धारीदार पारदर्शी पंखों से इसका पतला सा तोतिया रंगी शरीर साफ नजर आता है। कराईसोपा की कुछ प्रजातियों के प्रौढ़ तो मांसाहारी होते हैं जबकि अन्य के परागकण, मधुरस व नैक्टर आदि पर गुजारा करते हैं। कराईसोपा की सभी प्रजातियों के डिंबक मांसाहारी होते हैं। इस कीड़े की मांसाहारी प्रजातियों के प्रौढ़ व सभी प्रजातियों के डिंबक (शिशु) सफेद-मक्खी, तेला, चेपा, चुरड़ामिलीबग आदि शाकाहारी कीड़ों के प्रौढ़ों व बच्चों को खाकर जिंदा रहते हैं। ये कीड़े भाँत-भाँत की तरुण सूंडियों का भी भक्षण करते हैं। इस कीट की सिवासण मादाएं प्रजाति अनुसार एक-एक करके या गुच्छों में 600 से 800 तक डंठलदार अंडे देती हैं। अन्य कीटखोरों का शिकार होने से बचने के लिये ही ये अंडे बहुत ही महिन सफेद रंग के रेशमी से डंठलों पर रखे जाते हैँ। अंडों का रंग शुरु में पीला-हरा होता है जो बाद में सफेद तथा फूटने से पहले काला हो जाता है। चार दिन में ही इन अंडों से कराईसोपा के डिंबक निकल आते हैं। ये डिंबक अपने जीवन काल में तीन बार कांजली उतारते हैं। इनके शरीर की लम्बाई 3 से 20 मि.मी. तथा रंग मटमैला-पीला जिसके ऊपर गहरी धारियां भी होती हैं। कराईसोपा के ये डिंबक देखने में तो ऐसे दिखाई देते हैं जैसे कोई मिनी-मगरमच्छ हो। इनके जबड़े देखने में दरांतियों जैसे होते हैं। शिकार का खून चूसने के लिये इन जबड़ों की बदौलत ही शिकार के शरीर में सुराख किया जाता है। निडाना के किसानों ने कपास के खेत में क्राईसोपा के डिम्बक को मिलीबग का शिकार करते हुए मौके पर अनेकों बार देखा है व् इसकी वीडियो बनाई है. इन्होने कांग्रेस घास के पौधों पर भी इस डिम्बक को मिलीबग का सफाया करते देखा है.

 
कराईसोपा का अंडा।
.इन डिंबकों के भोजन में गजब की विविधता होती है। एक तरफ तो इनके भोजन में मिलीबग, तेले, सफेद-मक्खी, चुरड़े, चेपे व मकड़िया जूँ आदि छोटे-छोटे कीट होते हैं तथा दूसरी तरफ भांत-भांत की तरुण सूंडियां व विभिन्न कीटों के अंडे भी इनके भोजन में शामिल होते हैं। इनकी यह डिंबकिय अवस्था 15 से 20 दिन की होती है। अपने इस दो-तीन सप्ताह के जीवनकाल में ये डिंबक 100 से 600 तक चेपे(अल) डकार जाते हैं। चेपे खाने के मामले में पेटू होने के कारण ही शायद इन्हें चेपों का शेर कहा जाता बै। कराईसोपा की प्यूपेसन गोलाकार रेशमी ककून में होती है। कोकून काल 10 से 12 दिन का होता है। इस कोकून के अन्दर ही कराईसोपा का डिम्बक कायापल्टी कर-करा के प्रौढ़ के रूप में विकसित होता है. कराईसोपा की कुछ प्रजातियों को छोड़ कर ज्यादातर में जीवन के इस पड़ाव पर मांसाहार त्यागने की प्रवृति पाई जाती है.
कराईसोपा का अंडे।
अगर कीट प्रबन्धन के कमांडर व् मोर्चे पर जुटे किसान इस प्राकृतिक कीटनाशी को पहचानने लग जाये तो हमें अंदाज़ा नही कि हमारी फसलों में कितना कीटनाशी जहर कम हो जायेगा।
निडाना गाम के किसानों की तरह अगर आप भी इनकी फसलों के परितंत्र में पाये गये 118 किस्म के मांसाहारी को पहचानने,जानने व् परखने लग जाओ तो आपको भी अपनी फसल में एक छटांक कीटनाशक की जरूरत नही पड़ेगी।

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