छैल-मक्खी (Damsel fly) चौमासे (आमतौर पर जून, जुलाई और अगस्त) के दौरान विभिन्न फसलों में उड़ते हुए नजर आने वाली एक महत्वपूर्ण कीटखोर मक्खी है। हरियाणा में इसे तुलसा के नाम से जाना जाता है। लंबे, संकरे व पारदर्शी पंखों वाली ये मक्खियाँ कई रंगों में पाई जाती हैं। इन्हें लोपा-मक्खियों (Dragon flies) के मुकाबले कमजोर उड़ाकू माना जाता है। उड़ने की प्रतियोगिता में उपरोक्त कीटों की हार-जीत से किसानों का क्या लेना-देना। किसानों के लिये तो यह जानकारी फायदेमंद है कि इस छैल-मक्खी के प्रौढ़ व अर्भक, दोनों ही मांसाहारी होते है। यह मक्खी अपने अंडे खड़े पानी में देती है। पानी चाहे गावं के जोहड़ या जोहड़ी में हो या फिर धान के खेत में हो। इस कीड़े के अर्भक पानी में पाये जाने वाले मच्छर के लार्वा समेत उन अन्य सभी कीटों का शिकार कर लेते हैं जो आकार में इनके बराबर या छोटे हों। धान की फसल को हानि पहूँचाने वाले विभिन्न फुदकों का शिकार करने में इन्हें बहुत आनंद आता है। वैसे तो इस कीट के अर्भक पानी में रहते हैं लेकिन खाने के लिए अन्य कीड़ों की तलाश में धान के पौधों पर चढ़ने में इन्हें गुरेज नही होता। इस मक्खी की कुछ प्रजातियाँ तो मकड़ियों को भी खा जाती हैं, मकड़ी के जाले के पास मँडराते- मँडराते ही जाले में से मकड़ी को दबोच लेती हैं। भोजन के लिये अन्य कीड़ों का अभाव होने पर यह मक्खियाँ आपस में ही एक दूसरे को खा जाती हैं। शायद भोजन में इतनी विविधता के कारण ही भोजन श्रृंखला में इन्हे उच्चा दर्जा हासिल है।
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