स्लेटी भुंड जिला जींद में कपास का नामलेवा सा हानिकारक कीट है। लेकिन "घनी सयानी दो बर पोया करै" अख़बारों में पढ़ कर अपनी फसल में कीडों का अंदाजा लगाने वाले किसानों की इस जिला में भी कोई कमी नहीं है। भारी ज्ञान के भरोटे तलै खामखाँ बोझ मरते थोड़े जाथर वाले किसान इस स्लेटी भुंड को ही सफ़ेद मक्खी समझ कर धड़ाधड़ अपनी फसल में स्प्रे करते हुए आमतौर पर मिल जायेगें। इसमें खोट किसानों का भी नहीं है। एक तो घरेलु मक्खी व इस भुंड का साइज बराबर हो सै। दूसरी रही रंग की बात। स्लेटी अर् सफ़ेद रंग में फर्क करना म्हारे हरियाणा के माणसां के बस की बात कोन्या। लील देकर पहना हुआ सफ़ेद कुर्ता भी दो दिन में माट्टी अर् पसीने के मेल से स्लेटी ही बन जाता है। इसीलिए तो रंगों व कीटों की पहचान का कार्य यहाँ के किसानों को बुनियाद से ही सिखने की आवश्यकता है। कीट ज्ञान व पहचान की बुनियाद पर ही कीट नियंत्रण का मजबूत महल खड़ा हो सकता है अन्यथा कीट-नियंत्रण रूपी रेत के महल पहले भी ताश के पत्तों की तरह ढहते रहे हैं और आगे भी ढहते रहेगें।
यह स्लेटी भुंड कपास की फसल के अलावा बाजरा, ज्वार व अरहर की फसल में भी पाया जाता है। इस कीट का प्रौढ़ पौधों के जमीन से ऊपरले व गर्ब ज़मीन के निचले हिस्सों पर नुक्शान करता है। इस कीट की दोनों अवस्थाए पौधों की विभिन्न हिस्सों को कुतरकर व चबाकर खाती हैं। इस कीट का प्रौढ़ पत्तों या फूलों की पंखुडियों के किनारे नोच कर खाता है। यह पुंकेसर भी खा जाता है जबकि इसका गर्ब पौधों की जडें खाता है। कुल मिलाकर यह कीट कपास की फसल में अपनी उपस्थिति तो दर्ज कराता है मगर फसल में इसका कोई उल्लेखनीय नुकशान नहीं होता। इसीलिए तो इसे सफ़ेद मक्खी समझ कर किसानों को खेत में मोनो, क्लोरो, एसिफेट व कानफिडोर जैसे घातक कीटनाशकों के साथ लटोपिन होने की जरुरत नहीं होती। आतंकित हो कर भलाखे में किए गये कीटनाशक स्प्रे किसान व स्लेटी-भुंड, दोनों के लिए खतरनाक होते हैं।खानदानी परिचय: स्लेटी भुंड को द्विपदी प्रणाली मुताबिक कीट विज्ञानी माइलोसेर्स प्रजाति का भुंड कहते है इसके कुल का नाम कुर्कुलिओनिडि होता है। इस कीट की मादाएं पौण महीने की अवधि में लगभग साढे तीन सौ अंडे जमीन के अंदर देती हैं। इन अण्डों का रंग क्रीमी होता है जो बाद में मटियाला हो जाता है। अंडो का आकार एक मिलीमीटर से कम ही होता है। तीन-चार दिन की अवधि में अंड-विस्फोटन हो जाता हैतथा इसके शिशु अण्डों से बाहर निकल आते है। इस कीट के शिशु जिन्हें विज्ञानी गर्ब कहते हैं, जमीन के अंदर रहते हुए ही पौधों की जड़े खाकर गुजारा करते हैं। मौसम के मिजाज व भोजन की उपलब्धता अनुसार इनकी यह शिशु अवस्था 40 -45 दिन की होती है। इन शिशुओं के शरीर का रंग सफ़ेद व सिर का रंग भूरा होता है। इनके शरीर की लम्बाई लगभग आठ मिलीमीटर होती है। स्लेटी भुंड का प्यूपल जीवन सात-आठ दिन का होता है। प्युपेसन भी जमीं के अंदर ही होती
है। इसका प्रौढिय जीवन गर्मी के मौसम में दस- ग्यारह दिन का तथा सर्दी के मौसम में चार-पांच महीने का होता है। सर्दी के मौसम में यह कीट अडगें में छुपा बैठा रहता है। कपास की फसल में तो फूलों की शुरुवात होने पर ही दिखाई देने लगता है।
स्लेटी भुंड-पहली बार देखा. आभार.
ReplyDeleteVery interesting & informative initiative. Please keep it up. Best of Luck.
ReplyDeleteVERY INTERESTING INFORMATION FOR FARMERS AND EXTENSION SPECIALIST
ReplyDeleteSDAO, HANSI
narayan narayan
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteit is need to educate farmers about this tyoe of insects,first to educate those who are working as adviser to the farmers,as agriculture officers,most of them are unknown about this type insects ,
ReplyDeletegreetings to you,for this effort
Dr. Dalal its a highly informative blog. Good for our farmers. Keep it up.
ReplyDeleteइसका उपाय क्या है
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