"नन्ही - नन्ही बूंद पडै ........ साँग बिगडग्या सारा", पंडित लखमी चंद की इन मियां - मियां बूंदों जितना बड़ा व बुनावट में गिरती हुई आंसू जैसा यह कीट जिला जींद में किसानों एवं उनकी कपास का सांग ज़माने की पुरजोर कोशिश करता पाया गया है. निडाना, ईगराह व ललितखेडा के किसान इसे दस्यु बुगडा कहते हैं जबकि कीट वैज्ञानिक इसे ओरियस प्रजाति का एन्थाकोरिड बग कहते हैं. इसके शिशुओं का रंग सन्तरी व शरीर की लम्बाई बामुश्किल चार मिलीमीटर होती हैं. इसके प्रौढ़ लगभग चार - पाँच मिलीमीटर लंबे होते हैं. इनकी पंखों पर सफ़ेद व काले चित्तके होते हैं. इनकी प्रौढ मादा अपने जीवन काल में सवा सौ से ज्यादा अंडे देती है. अंडे पौधों के तंतुओं में दिए जाते हैं. अंड विस्फोटन में चार - पॉँच दिन का समय लग जाता है. अण्डों से निकले, इनके शिशु सात - आठ दिन में पंखदार प्रौढ़ के रूप में विकसित हो जाते हैं. इनका प्रौढिय जीवन तक़रीबन चौबीस- पच्चीस दिन का होता है . यह बुगडा चूसक किस्म का सामान्य परभक्षी है जिसके भोजन में विभिन्न कीटों के अंडे, अल - चेपे, चुरडे, मक्खी, मच्छर, मिलीबग के शिशु व माँइट्स शामिल होते हैं. एक दस्यु बुगडा प्रतिदिन तीस से ज्यादा चेप्पे चट कर जाता है. पुरे जीवन में कितने खायेगा आप ख़ुद गुणा - भाग करके हिसाब लगालें. शिकार न मिले तो पराग --कणों व पौधों के जूस से ही गुजारा कर लेता है . इनके इस थोड़े से दोगलेपन के कारण ही कीटनाशकों की मार इन पर कुछ ज्यादा ही पडती है.
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