Wednesday, July 25, 2012

ईंख में काला बुग्ड़ा

Cavelerius excavatus Dist.
हरियाणा में इस कीट को काली भुंडी या काली कीड़ी कहा जाता है। क्यों? यह हम्में भी मालूम नहीं। पर यह पक्का पता है कि अंग्रेज इसे black bug कहते है।  कीट विज्ञानी इस कीड़े को अपनी भाषा में Cavelerius excavatus Dist. पुकारते हैं। वे इसका वंशक्रम Hemiptera व् कुटुंब  Lygaeidae बताते हैं। लम्बौतरे बदन वाले इस काले कीट के प्रौढ़ की टांगों का रंग बादामी व् पंखों का रंग कहीं से सफ़ेद तथा कहीं से काला होता है। पंखों पर बादामी रंग के W व् Y चिन्ह होते हैं। इसके शिशु शारीरिक बुनावट में तो अपने प्रौढ़ों के समान होते हैं पर आकार छोटा होता है। ये शिशु काले व् गुलाबी रंगों की छटा लिए पंखविहीन होते हैं।  इस कीट के प्रौढ़ व निम्फ दोनों ही ईंख की फसल में पर्णचक्करी में छुपकर रहते हैं व् पत्तों से रस चूस कर अपना पेट पालते हैं। ईंख के पत्तों से इन द्वारा रस चूसने के कारण, निसंदेह पौधों में रस की मात्रा कम हो जाती है पर सामान्य परस्थितियों में पौधे अपनी क्षतिपूर्ति क्षमताओं के चलते इस कमी को पूरा कर लेते हैं। पर इस कीड़े को गर्म व् शुष्क मौसम ज्यादा माफ़िक बैठता है। इसीलिए हरियाणा में यह कीट मई -जून के महीनों में ज्यादा दिखाई देता है। पहले मोढ़ी में दिखाई देता है व् बाद में बौअड़ में। सूखे व् रूखे हालात में ही इस कीड़े का रस पीकर गुज़ारा करना ईंख की फसल व् फसल के मालिक को महंगा पड़ सकता है। फसल अपनी इस पीड़ा को अपने पत्तों का रंग हल्दिया कर अपने मालिक को मदद के लिए गुहार लगाती है। सिंचाई के साथ-साथ अगर जिंक-यूरिया-डी.ए.पी. के 5.5% घोल का स्प्रे हो जाये तो पौधे इस रस हानि क़ी क्षतिपूर्ति कर लेते हैं।    ईंख के अलावा यह मक्की, धान व् कई तरह के घासों पर भी गुज़ारा कर लेता है।

2 comments:

  1. RAS ki purti kaise ho ye to btaya DR. Sahab, lekin is se nijaat kaise mile?

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  2. रस की क्षतिपूर्ति होने पर इससे निजात पाने की आवश्यकता कहाँ रह जाती है. यह कीट अपनी मौत अपने आप मर जायेगा.

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