Monday, December 17, 2012

भंभीरी - प्राकृतिक कीटनाशी

 भीं-भीं करते हुए चारपाई के शेरुओं और बाईयों के सुराखों में घुसने वाला यह कीड़ा भंभीरी ही तो होता था। अब जब खाट के ये शेरू अर बाई बांस के नहीं रहे तो ये भंभीरी भी घरों में कम दिखाई देने लगी। आज कल तो ज्यादातर खेतों में पोल्ट्री व् डेरी के आसपास जमीन में सुरंग खोद कर रहती हैं। अंग्रेज इनको digger wasp के नाम से जानते हैं। कीट विज्ञानिक इनको Oxybelus sp के रूप में जानते पहचानते हैं। नामकरण की द्विपदी प्रणाली के मुताबिक इस कीट का कुटुम्ब Crabronidae व वंशक्रम Hymenoptera है।

भंभीरी एकांकी जीवन जीती है। कीट की प्रौढ़ मादा अपनी अगली टांगों के मदद से रेतीली मिट्टी में अपने घोंसले का निर्माण करती है। इस निर्माण में एक या दो प्रकोष्ठ ही होते हैं।

Sunday, December 16, 2012

प्राकृतिक कीटनाशी- बुच्ची संभिरकायेँ

प्रौढ़ ब्राची
 बीस तरह की मकड़ियों व् पाँच तरह के रोगाणुओं के अलावा कीट साक्षरता केंद्र, निडाना के किसान अभी तक निडाना के कीट परितंत्र में 123 किस्म के मांसाहारी कीट देख चुके हैं। इनमें 92 किस्म के परभक्षी, 29 किस्म के परजीव्याभ व् 2 किस्म के परजीवी कीट शामिल हैं। परजीव्याभों में 21 किस्म के परपेटिये, 3 किस्म के परप्युपीये व्  5 किस्म के परअंडिये  पाये गये हैं।
यहाँ के किसान इन बुच्ची संभीरकाओं की गिनती परप्यूपिये कीटों में करते हैं। क्योंकि ये कीट अपने बच्चे दुसरे कीटों के प्यूपों में पलवाते हैं। वैसे तो निडाना के खेत-खलियानों में दर्जनों किस्म की बुच्ची सम्भिरकाएं मौजूद होंगी। पर किसानों ने तो अभी तक दो ही तरह की पकड़ी हैं- एक ब्राची व् दूसरी कालसी। ब्राची कों इन्होंने तम्बाकुआ सुंडी के प्यूपा से निकलते देखा है व् कालसी को साईं मक्खी के प्यूपा से। ये सम्भिरका आकार में काफी छोटी होती हैं। औसतन 3 से 6 मिलीमीटर। शायद इसीलिए इनकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं गया और ना ही इनके कार्य पर। अन्यथा तो प्राकृतिक तौर पर कीट नियंत्रण में इन सम्भिरकाओं की भी खासी महती भूमिका है। ये संभिरका छोटी बेशक हों पर इनका बदन बलिष्ट एवं गठीला होता है। मुठिया एंटीने व् अत्याधिक मोटी जांघे इनकी पहचान है।



Saturday, December 8, 2012

राम का घोड़ा या गाय?


इस धरती पर यू माणस भी गजब का प्राणी सै। मोह और माया के चक्कर में सब कुछ बाँट लिया। इस बंदर बाँट में शेर नै ना भूमि बक्शी और ना भगवान। निजी मुनाफे पर आधारित इस बंटवारे में सबकी रोळ भी खूब मारी गयी। दूध पीने के लिए अपने पास तो भैस, गाय, ऊँट, भेड़ व् बकरी आदि चोखा दूध देने वाले पशु रख लिये अर राम को पकड़ा दिया यू रंग-बिरंगा कीड़ा।  सवारी के लिये अपने पास तो गधे, घोड़े व् खच्चर रख लिये अर अर राम को पकड़ा दिया यू रंग-बिरंगा कीड़ा। सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान एवं सूक्ष्म राम की रोळ तो इस माणस ने मारी ही मारी। ऊपर तै भारी भरकम अहसान और रख दिया न्यू कह कर कि भगवन आपको तो हमने छांट कर ऐसा जन्नौर दिया है जो आपके घर से कुछ नही खायेगा। इसका दूध भी मुफ्त में पीना और सवारी भी मुफ्त में करना। इसके बच्चे और सयाने दोनों आक्खटे के पत्ते खाकर कर गुज़ारा कर लेते हैं। भगवान पै न तो ना ही कही गई और ना ही हाँ। बस उसके मुहँ तै तो इतना लिकड़ा अक है धरतीपुत्रो पर इस जन्नौर को किस नाम से पुकारा करोगे? इसमें क्या दिक्कत है राम जी। नकुले इसको राम का घोड़ा कह लेंगे अर दूध के लाड़े इसको राम की गाय कह लेंगे। तभी से हमारे यहाँ इस कीड़े को राम की गाय या घोड़े के रूप में जाना जाता है। पर इस कलयुग में कीट वैज्ञानिकों की खाप ने अपनी पंचायत में इस कीड़े का नाम Poekilocerus pictus रख  लिया।  इसका परिवार Pyrogomorphinae तथा इसका वंशक्रम Orthroptera तय कर दिया गया।            
                                राम इस कीड़े का दूध कैसे पीता है और इसकी सवारी कैसे करता है? हमें तो आज तक मालूम नहीं हुआ। पर हमें यह जरुर मालूम है कि यह शाकाहारी कीड़ा कलकता से पेशावर तक पाया जाता है। पर पायेगा वहीं जहाँ आक के पौधे होंगे। पाये भी क्यों नहीं? आक इस कीड़े का प्रमुख एवं सबसे ज्यादा पसंद भोजन जो ठहरा। पर इसका मतलब यह नही कि ये आक के अलावा कुछ भी नहीं खायेंगे। भूखे मरते तो रो पीटकर 200 से भी ज्यादा पौधों की प्रजातियों पर गुज़ारा कर लेते हैं।  जिनमें कपास, गेहूँ, मक्का, लोबिया, अरण्ड, भिंडी व बैंगन आदि भी शामिल हैं। सुना है 1973 की साल पाकिस्तान के झंग जिला में चिनाब नदी के आसपास इस कीड़े ने कपास, खरभुजे, मिर्च व् लोकी की फसल में काफी नुकशान पंहुचा दिया था। ऐसा तो इस कीड़े के निजी जीवन में अत्याधिक मानवीय हस्तेक्षप के कारण हो सकता है। अगर कोई आक़ के पौधे ही खत्म कर डाले तो ये बेचारे क्या करेंगे?
        अपने प्रौढीय जीवन में प्रवेश के एक-दो दिन बाद ही इस कीट की मादायें सहवास के योग्य हो जाती हैं। इनके जोड़े 6-7 घंटे तक रतिरत रहते हैं। ये मादायें अपने जीवनकाल में 15-16 बार रतिरत होती है और हर बार नये नर के साथ। मादा अपने जीवन काल में एक या अधिक से अधिक दो अंड-फली देती है। हर अंड-फली में तकरीबन 150 अंडे होते हैं। इन अंडो से निकले निम्फ आक के पौधे के पास दिखाई देते हैं। पैदाइस से प्रौढ़ विकसित होने तक ये निम्फ आमतौर पर छ: बार कांजली उतारते हैं।  खाने के लिए आक के पत्तों की उपलब्धता के  बावजुद इस कीट के प्रौढ़ स्वाद बदली के लिये आपस में एक दुसरे को भी खा जाते हैं।