जंगीरा हमारी फसलों में मिलीबग को काबू करने वाली एक परजीव्याभ सम्भीरका है। जी हाँ! उसी विदेशी मिलीबग को जिसने भारत में कपास की खेती के लिए गंभीर समस्या के रूप में देखा जाने लगा था। भला हो इन सम्भीरकाओं का जिन्होंने इस किटिया संकट से निजात दिलाने में जिला जींद के किसानों की भरपूर मदद की।
अंगीरा व् फंगिरा की तरह जंगीरा भी अपने बच्चे मिलीबग के पेट में ही पलवाता है। Hymenoptera वंशक्रम की यह सम्भीरका भी आकर में बहुत छोटी होती है। इसके शारीर की लम्बाई बामुश्किल 2 -3 मी.मी. ही होती है। पर अपने जीवनकाल में 100 से ज्यादा अंडे देती है पर एक मिलीबग के पेट में केवल एक ही अंडा देती है। इस को अंग्रेज किस नाम से पुकारते हैं- हमें नही मालूम। कीट विज्ञानं की
भाषा में इसका नाम, खरना, कुनबा व् प्रजाति आदि भी- हमें नही मालूम। पर
हमें यह अच्छी तरह से मालूम है कि Hymenoptera वंशक्रम की यह जंगीरा नामक
सम्भीरका अपने बच्चे मिलीबग के पेट में पलवाती है। वंशवृद्धि के लिए इन्हें असाधारण कौशल की जरुरत होती है। आवश्यकता अनुसार भोजन
उपलब्ध होने पर इसके नवजातों को पूर्ण विकसित होने के लिए 15 -16 दिन का
समय लगता है। इसीलिए इसकी प्रौढ़ मादा को अंडा देने के लिए ऐसे स्वस्थ
मादा मिलीबग की तलाश रहती है जिसका जीवन अभी 18 -20 दिन का और बकाया हो। मिलीबग के पेट में अंडे से निकलते ही इस सम्भीरका के नवजात मादा मिलीबग
को अन्दर-अन्दर ही खाना शुरू करते हैं। यह प्रक्रिया आरम्भ होते ही मिलीबग
पौधों से रस पीना तो छोड़ देता है पर ना तो इसके शारीर से आटानुमा पाउडर
उड़ता है और ना ही यह रंग बदलता है। मतलब ऊपर से देखने पर प्रकोपित मिलीबग
सामान्य ही दिखाई देता है। इस भली सी सम्भीरका की अंडे से लेकर प्रौढ़ तक
की सभी अवस्थाएं मिलीबग के पेट में ही पूरी होती हैं। पर प्रौढ़ सम्भीरका
अपना स्वतंत्र जीवन जीने के लिए हमेशा मिलीबग के अगले सिरे में सुराख़ करके ही
बाहर निकलती है। इस प्रक्रिया में मिलीबग को मिलती है-मौत। यही तो किसान
चाहते हैं। मिलीबग को ख़त्म करने के लिए किसान कीटनाशकों का इस्तेमाल भी
इसीलिए करते हैं। अगर हम सभी को यह अच्छी तरह से जानकारी हो जाये कि मिलीबग
को काबू करने के लिए अन्य कीटों के साथ-साथ जंगीरा नामक यह परजीव्याभ
सम्भीरका भी हमारी फसलों में मौजूद है तो क्यों कोई किसान किसी कीटनाशक का
प्रयोग करेगा?
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