Sunday, March 22, 2009

किसान मित्र - कोटेसिया

मैं, कोटेसिया नाम की सम्भीरका हूँ। इस जगत में स्वतंत्र जीवन जीने के लिए अपने कोकून से निकली ही थी कि जिला जींद के निडाना गावँ में कैमरे में कैद कर ली गयी। कैद का मतलब कथा-आत्मकथा लिखने का सुनैहरीअवसर। बेवारसा जाना तो हमारे समाज में भी अच्छा नही माना जाता। पर इन्सानों की तरह अतिरक्त उत्पादन तो दूर की बात, हमें तो भोजन संग्रह तक नही करना पडता।हमारे कीट समाज में तो पैदावार के नाम पर बस प्रजनन ही होता है। इसीलिए तो मेरा और मेरे मर्द का रिश्ता-नाता सिर्फ़ मधुर मिलन तक सिमित होता है। और तो और मेरा व बच्चों का रिश्ता भी अंडे देने के साथ ही समाप्त हो जाता है। अण्डों से निकले मेरे बच्चों को अपना बाप का पता नही होता। उन बेच्चारों को तो अपनी माँ का भी पता नही होता। अपने बच्चों के लिए भोजन व आवास के पुख्ता प्रबंधन वास्ते एक अदद सुंडी को ढुँढ लेना ही हमारे जीवन की सफलता माना जाता है। आजादी की ली दो साँस और फ़िर किया सहवास। ढुँढी एक पली पलाई सुंडी तथा अंडनिक्षेपक की सहायता से घुसेड़े इसके शरीर में सैकडों अंडे। बस निफराम। अण्डों से निकले नवजात सुंडी को अंदर ही अंदर से खा पीकर पलते बढ़ते है। यही बच्चे पूर्ण विकसित होकर प्रौढिय रूपांतरण हेतु ककून का निर्माण करते है। वास्तुकला, ज्यामिति व कला का बेजोड़ नमूना होता है यह - ककून। अफ़सोस!आपके मानवसमाज ने हमारे इस हुनर व काम को ठीक उसी तरह नज़र अंदाज किया है जिस तरह से बिटोडों पर अपनी लुगाईयों की महान चित्रकला को।

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