Monday, June 1, 2009

फंगिरा -एक परजीव्याभ सम्भीरका




फंगिरा जिला जींद में किसानों द्वारा देखी गई  एक परजीव्याभ सम्भीरका है। है तो बहुत छोटी पर कपास की फसल का भस्मासुर कहे जाने वाले रस चुसक कीट मिलीबग को प्राकृतिक तौर पर काबू करने में महती भूमिका निभाती है। इस को अंग्रेज किस नाम से पुकारते हैं- हमें नही मालूम। कीट विज्ञानं की भाषा में इसका नाम, खरना, कुनबा व् प्रजाति आदि भी- हमें नही मालूम। पर हमें यह अच्छी तरह से पता है कि Hymenoptera वंशक्रम की यह फंगिरा नामक सम्भीरका अपने बच्चे मिलीबग के पेट में पलवाती है। वंशवृद्धि के इस असाधारण कार्य हेतु इन्हें असाधारण कौशल की जरुरत होती है। आवश्यकता अनुसार भोजन उपलब्ध होने पर इसके नवजातों को पूर्ण विकसित होने के लिए 15 -16  दिन का समय लगता है।  इसीलिए इसकी प्रौढ़ मादा को अंडा देने के लिए ऐसे स्वस्थ मादा मिलीबग की तलाश रहती है जिसका जीवन अभी 18 -20  दिन का और बकाया हो। यह सम्भीरका एक-एक करके सौ से ज्यादा मिलिबगों के पेट में अंड-निक्षेपण करती है। मिलीबग के पेट में अंडे से निकलते ही इस सम्भीरका के नवजात मिलीबग को अन्दर-अन्दर ही खाना शुरू करते हैं। यह प्रक्रिया आरम्भ होते ही मिलीबग पौधों से रस पीना तो छोड़ देता है पर ना तो इसके शारीर से आटानुमा पाउडर उड़ता है और ना ही यह रंग बदलता है। मतलब ऊपर से देखने पर प्रकोपित मिलीबग सामान्य ही दिखाई देता है। इस भली सी सम्भीरका की अंडे से लेकर प्रौढ़ तक की सभी अवस्थाएं मिलीबग के पेट में ही पूरी होती हैं। पर  प्रौढ़ सम्भीरका अपना स्वतंत्र जीवन जीने के लिए हमेशा मिलीबग की कमर में सुराख़ करके ही बाहर निकलती है। इस प्रक्रिया में मिलीबग को मिलती है-मौत। यही तो किसान चाहते हैं। मिलीबग को ख़त्म करने के लिए किसान कीटनाशकों का इस्तेमाल भी इसीलिए करते हैं। अगर हम सभी को यह अच्छी तरह से जानकारी हो जाये कि मिलीबग को काबू करने के लिए अन्य कीटों के साथ-साथ फंगिरा नामक यह परजीव्याभ सम्भीरका भी हमारी फसलों में मौजूद है तो क्यों कोई किसान किसी कीटनाशक का प्रयोग करेगा?

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