Saturday, September 1, 2012

बाजरे की सिर्टियों पर गुबरैले का बसेरा


यू हरे धातुई रंग का भूंड जो बाजरे की सिर्टियों पर बैठा दूर तै एँ नजर आया करै। यू  चर्वक किस्म का एक शाकाहारी गुबरैला सै। अंग्रेजी में इस कीड़े को Rose chafer के रूप में जाना जाता है। कीट विज्ञानियों की दुनिया में इसे Cetonia aurata नाम से पुकारा व् लिखा जाता है। इस कीट के प्रौढ़ प्राय गुलाब के फूलों पर मधुरस व् परागकण पर गुज़ारा करते नजर आते हैं। पर हरियाणा के खेतों में तो गुलाब के पौधे होते ही नही। इसीलिए इस गुबरैले को बाजरे की सिर्टियों पर काचा बुर(परागखा कर गुज़ारा करना पड़ता है। और करै भी के? इसनै तो भी अपना पेट भरना सै अर वंश वृद्धि का जुगाड़ करना सै। बाजरे की फसल में तो बीज पराये पराग से पड़ते हैं। अत: इस कीट द्वारा बाजरे की फसल में पराग खाने से कोई हानि नही होती। बल्कि जमीन में रहने वाले इसके बच्चे तो किसानों के लिए लाभकारी सै क्योंकि जमीन में वे केंचुवों वाला काम करते हैं। अत: इस कीड़े को बाजरे की सिर्टियों पर देखकर किसे भी किसान नै अपना कच्छा गिला करण की जरुरत नही अर ना किते जा कर इसका इलाज़ खोजन की।
आपने हरियाणा में ज्युकर बहुत कम लोगाँ नै मोरनी पै मोर चढ्या देखा सै न्यू यू कीड़ा भी शायद बहु ही कम किसानों व् कीट वैज्ञानिकों नै ज्वार की सिर्टियों पर देखा सै। असली बात तो या सै अक यू कीड़ा सै भी ज्वार की फसल का कीड़ा। पर कौन देखै ध्यान तै ज्वार की सिर्टीयाँ नै।
इस कीड़े को खान खातिर म्हारे खेताँ में काबर, कव्वे व् डरेंगो के साथ-साथ लोपा मक्खियाँ भी खूब सैं अर डायन मक्खी भी खूब सै।  बिंदु-बुग्ड़े, सिंगू-बुग्ड़े व् कातिल-बुग्ड़े भी नज़र आवैं सैं।  हथ्जोड़े तो पग-पग पर पावे सै। यें भी इसका काम तमाम करे सै।

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